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  • 2025-10-31

National News: सावधान! बिजली सुधार के नाम पर प्राइवेट कंपनियों को लूट की खुली छूट

National News: केंद्र सरकार राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों (DISCOM) को घाटे से निकालने के बहाने एक लाख करोड़ रुपये का पैकेज लाने जा रही है लेकिन लगी शर्तें आम जनता की जेब काटने वाली साबित होंगी.

मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि अगले बजट में यह योजना आएगी जहां राज्यों को डिस्कॉम को पीपीपी मॉडल में खोलना और स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट कराना मजबूरी होगी. विकल्प दो हैं या तो नई कंपनी बनाकर 51 प्रतिशत शेयर निजी क्षेत्र को सौंप दो या मौजूदा में 26 प्रतिशत हिस्सा दे दो. बदले में लोन और सुविधाएं मिलेंगी लेकिन असल में बिजली वितरण निजी कंपनियों के हाथ सौंप दिया जाएगा.

सरकार का यह कदम जनकल्याण की बजाय कॉर्पोरेट हित साधने वाला लगता है क्योंकि निजीकरण के बाद सेवा सुधार की गारंटी नहीं बल्कि मनमानी दरें और लूट तय है. मोबाइल रिचार्ज टोल टैक्स एयरपोर्ट सेवाओं में पहले ही निजी मोनोपोली से जनता त्रस्त है और अब बिजली भी उसी राह पर धकेली जा रही है. सरकारी कंपनियां अभी सब्सिडी राहत देती हैं भले घाटा हो लेकिन जनता के टैक्स से चलती हैं और कल्याण सोचती हैं.

निजी हाथों में जाने पर मुनाफा ही लक्ष्य होगा बिजली महंगी हो जाएगी और कनेक्शन होने पर भी बल्ब जलाना फ्रीज चलाना आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाएगा. सरकार घाटा कम करने का दावा करती है लेकिन बिल न चुकाने वालों पर सख्ती या चोरी रोकने के बजाय निजीकरण थोप रही है जो साफ कॉर्पोरेट लॉबी की जीत है. जनता को सस्ती विश्वसनीय बिजली चाहिए न कि अमीर कंपनियों की जेब भरने का बहाना.

यह पैकेज डिस्कॉम सुधार का मुखौटा ओढ़कर निजीकरण थोपने की साजिश है जो उपभोक्ताओं को महंगी बिजली की मार झेलने पर मजबूर करेगा. सरकार की आलोचना इसलिए जरूरी क्योंकि घाटे की जड़ चोरी बकाया और अक्षमता में है जिसे सुधारने की बजाय निजी हाथ सौंपना जनविरोधी है. पीपीपी में पारदर्शिता का दावा खोखला साबित होगा क्योंकि मोनोपोली बनते ही दरें आसमान छुएंगी. गरीब सब्सिडी खोएगा और मध्यम वर्ग बोझ तले दबेगा. कुल मिलाकर केंद्र की यह नीति कॉर्पोरेट पक्षधर है जो बिजली जैसे आवश्यक सेवा को बाजार की भेंट चढ़ा रही है.

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