आज से 119 वर्ष पहले, टाटा स्टील सिर्फ एक उद्योग नहीं, बल्कि आदर्श कॉर्पोरेट नागरिकता का प्रतीक है। यह इसके संस्थापक की दूरदर्शी सोच का जीवंत प्रमाण है जिसने राष्ट्र-निर्माण को ही अपना उद्देश्य बनाया।
जब जे.एन. टाटा ने भारत में इस्पात कारखाना बनाने का विचार पहली बार प्रस्तुत किया, तब वह अपने समय से कहीं आगे का सपना था। उस दौर में जब दुनिया इस प्रयास की संभावना पर संदेह कर रही थी, तब जमशेदजी का अडिग विश्वास और साहस ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बना। वर्ष 1907 में जमशेदपुर में टाटा स्टील का जन्म हुआ— एक ऐसे नगर में, जो उन्हीं दृढ़ मूल्यों और सिद्धांतों पर खड़ा है, जितने मजबूत इस्पात का वह उत्पादन करता है।
टाटा स्टील का इतिहास केवल एक उद्योग की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस क्षण का प्रतीक है जब आधुनिक भारत ने उड़ान भरनी शुरू की। इस कंपनी ने इस्पात निर्माण की कला को नई दिशा दी और उससे भी बढ़कर, समावेशी विकास की परंपरा को जन्म दिया। बीसवीं सदी की शुरुआत में मज़दूर कल्याण और नगर नियोजन की नींव रखने से लेकर, आज अत्याधुनिक विनिर्माण, सामुदायिक उत्थान, पर्यावरण संरक्षण और नैतिक नेतृत्व को आगे बढ़ाने तक—टाटा स्टील उद्देश्यपूर्ण उद्यम और प्रगतिशील सोच का अमिट उदाहरण बनकर खड़ी है।

टाटा स्टील ने कभी भी सफलता को केवल वित्तीय उपलब्धियों या उत्पादन के आँकड़ों से परिभाषित नहीं किया। अपनी स्थापना के समय से ही कंपनी ने यह दर्शन अपनाया कि व्यवसाय का असली उद्देश्य समाज की सेवा करना है। ‘कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ (सीएसआर) शब्द के प्रचलन में आने से कई दशक पहले ही टाटा स्टील ने अपने परिचालन क्षेत्रों से जुड़े समुदायों के कल्याण में निवेश करना शुरू कर दिया था। आज भी कंपनी अपने संस्थापक की उस दूरदृष्टि से प्रेरित है: “समुदाय केवल कारोबार का एक हितधारक नहीं, बल्कि उसके अस्तित्व का असली उद्देश्य है।” इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए, वित्तीय वर्ष 2024-25 में टाटा स्टील की सीएसआर पहलों से पूरे भारत में 57.7 लाख से अधिक लोगों का जीवन सकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ।
अपने एक सदी से भी अधिक लंबे सफ़र में टाटा स्टील ने विश्व युद्धों, आर्थिक संकटों और तकनीकी बदलावों जैसी अनेक चुनौतियों का सामना किया है। हर चुनौती को कंपनी ने नवाचार, एजीलिटी और दृढ़ता के साथ पार किया। भारत का पहला एकीकृत इस्पात संयंत्र होने से लेकर विश्व के सबसे बड़े एकीकृत इस्पात उत्पादकों में शामिल होने तक, टाटा स्टील की यात्रा अग्रणी उपलब्धियों और अनुकूलनशीलता की भावना से परिपूर्ण रही है। आज, कई देशों में फैले संचालन और विविध उत्पाद पोर्टफोलियो के साथ, टाटा स्टील संचालन उत्कृष्टता, तकनीकी नेतृत्व और सभी हितधारकों के लिए मूल्य सृजन के अपने संकल्प पर अडिग है।
21वीं सदी में भी कंपनी का ध्यान उन सभी क्षेत्रों में सतत प्रगति पर केंद्रित है जहाँ वह कार्यरत है। वित्तीय वर्ष 2024-25 कंपनी के लिए एक अहम पड़ाव रहा, जब टाटा स्टील ने कलिंगानगर में भारत का सबसे बड़ा ब्लास्ट फर्नेस शुरू किया और कम-उत्सर्जन करने वाले इस्पात निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाते हुए लुधियाना (भारत) और पोर्ट टैलबॉट (यूके) में इलेक्ट्रिक आर्क फर्नेस स्थापित करने की प्रक्रिया आरंभ की।
टाटा स्टील ने वर्ष 2045 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसी उद्देश्य से कंपनी लगातार अपने वैल्यू चेन में डीकार्बोनाइज़ेशन को आगे बढ़ाने में निवेश कर रही है—नवोन्मेषी तकनीकों को अपनाकर, लॉजिस्टिक्स में वैकल्पिक ईंधनों का उपयोग करके और सर्कुलर इकॉनमी को सुदृढ़ बनाकर। नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग और डिजिटल परिवर्तन को अपनाने में इसके सहयोग और निवेश इस बात का प्रमाण हैं कि कंपनी अपनी विकास यात्रा को पर्यावरणीय संरक्षण के साथ संतुलित रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
टाटा स्टील की यात्रा का अगला अध्याय ऐसे समाधानों के सृजन का है, जो केवल बाज़ार की मांगों तक सीमित न रहकर पूरे ग्रह के हित में हों।  कंपनी की दिशा स्पष्ट है—इस्पात उद्योग को एक सतत भविष्य की ओर ले जाना, जहां उद्योग की प्रगति, लोगों का कल्याण और पर्यावरण का संरक्षण एक साथ आगे बढ़ें।