World Bank Report: हेडलाइन पढ़कर आप भी यही सोच रहे होंगे यह गलत है, सबसे ज्यादा कर्ज तो पाकिस्तान और बांग्लादेश पर होना चाहिए, भारत सबसे बड़ा कर्जदार कैसे हो सकता है? लेकिन यह सच है. वर्ल्ड बैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत ही उसका सबसे बड़ा कर्जदार है. मेनस्ट्रीम मिडिया यह आपको कभी नहीं बताएगा क्योंकि उसे धार्मिक डिबेट और फिलहाल इंडिया पाकिस्तान एशिया कप मैच की टीआरपी मिल रही है. बड़े बड़े टीवी एंकर्स सरकरी विज्ञापन का अनादर करने के लिए यह रिपोर्ट अपनी टीवी पर नहीं दिखायेंगे. आखिर क्यों और कैसे बन गया भारत विश्व बैंक का सबसे बड़ा कर्जदार? यह सवाल सरकार से मेनस्ट्रीम मिडिया कभी नहीं पूछेगा. अगर देश में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ गए है तो 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन देने की जरुरत क्यों पड़ रही है? सरकार को सामने आकर ये बताना चाहिए कि भारत इतना बड़ा कर्जदार कैसे बना? क्योंकि ये कर्ज भारत के लोगों पर है न कि अंबानी और अडानी की कंपनियों पर.
भारत पर सबसे ज्यादा कर्ज
वर्ल्ड बैंक की ताजा रिपोर्ट साफ कहती है कि भारत इस समय उसका सबसे बड़ा कर्जदार देश बन चुका है. भारत पर 24.4 बिलियन डॉलर यानी करीब 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक का बोझ है. सूची में इंडोनेशिया 21.3 बिलियन डॉलर के कर्ज के साथ दूसरे नंबर पर है. उसके बाद यूक्रेन (16.6 बिलियन डॉलर), कोलंबिया (16.4 बिलियन डॉलर), ब्राजील (15.5 बिलियन डॉलर), फिलीपींस (14.7 बिलियन डॉलर) और चीन (14.4 बिलियन डॉलर) जैसे देश हैं.
भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहलाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला यह देश अब वर्ल्ड बैंक के सामने सबसे ज्यादा झुका हुआ है.
क्यों लेना पड़ रहा है इतना कर्ज?
गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, ऊर्जा और जल प्रबंधन जैसे विकास योजनाओं के लिए पैसा चाहिए. सवाल है कि जब टैक्स का रिकॉर्ड कलेक्शन हो रहा है, पेट्रोल-डीजल पर जनता की हड्डियां निचोड़ी जा रही हैं, जीएसटी का बोझ आम आदमी पर है, तो फिर इतना बड़ा विदेशी कर्ज क्यों लेना पड़ रहा है?
क्या ये कर्ज सच में गरीब की झोपड़ी तक पहुंच रहा है, या फिर ये रकम बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों की तिजोरियों में गायब हो रही है? गरीब का पेट भरने के नाम पर वोटबैंक साधा जाता है और अमीरों के लिए टैक्स में छूट व कर्ज माफी का खेल चलता है.
आगे की राह
कर्ज लेना अपराध नहीं है, लेकिन कर्ज का सही इस्तेमाल होना चाहिए. अगर यह पैसा उत्पादन, रोजगार और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च हो तो देश की जीडीपी बढ़ सकती है. लेकिन अगर यह पैसा सिर्फ राजकोषीय घाटा पाटने और वोटबैंक साधने में खर्च होगा, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए यह बोझ जानलेवा साबित होगा.
भारत के लिए असली चुनौती है कि क्या सरकार इस कर्ज को सही दिशा में लगाएगी, या फिर यह भी कॉरपोरेट्स और चुनावी राजनीति के गड्ढे में गुम हो जाएगा?