National News: महाराष्ट्र के ऐतिहासिक शहर औरंगाबाद का नाम बदलकर छत्रपति संभाजीनगर किए जाने के लगभग तीन साल बाद अब रेलवे ने भी इस बदलाव को आधिकारिक रूप से लागू कर दिया है. मध्य रेलवे ने घोषणा की है कि अब औरंगाबाद रेलवे स्टेशन का नाम छत्रपति संभाजीनगर रेलवे स्टेशन होगा. स्टेशन का नया कोड “CPSN” तय किया गया है. यह स्टेशन दक्षिण मध्य रेलवे के नांदेड़ डिवीजन के अंतर्गत आता है. रेलवे ने बताया कि नाम परिवर्तन की औपचारिक प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और जल्द ही सभी प्लेटफॉर्म संकेतक, टिकटिंग सिस्टम, समय सारणी और डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड पर नया नाम नजर आने लगेगा.
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने 15 अक्टूबर को इस बदलाव से संबंधित गजट अधिसूचना जारी की थी. इसके साथ ही स्टेशन के नाम बदलने की प्रक्रिया को औपचारिक रूप से शुरू किया गया था. यह फैसला मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति और वीरता के प्रतीक छत्रपति संभाजी महाराज की स्मृति में लिया गया है. राज्य सरकार पहले ही वर्ष 2022 में औरंगाबाद शहर का नाम बदलने को मंजूरी दे चुकी थी, लेकिन रेलवे स्टेशन का नाम बदलने में केंद्र सरकार की अनुमति और प्रशासनिक औपचारिकताओं के कारण प्रक्रिया लंबी चली. अब यह सभी चरण पूरे हो चुके हैं.
औरंगाबाद रेलवे स्टेशन की स्थापना वर्ष 1900 में हुई थी, जब हैदराबाद के सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान के शासनकाल में यहां रेल संचालन शुरू किया गया था. यह स्टेशन मराठवाड़ा क्षेत्र के प्रमुख यात्री केंद्रों में से एक रहा है. छत्रपति संभाजीनगर आज भी पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शामिल अजंता और एलोरा की गुफाएं, बीबी का मकबरा, दौलताबाद किला और पंचक्की जैसे ऐतिहासिक स्थलों के कारण यह शहर पर्यटकों को आकर्षित करता है. नाम बदलने के बाद शहर और स्टेशन दोनों की पहचान अब मराठा गौरव और सांस्कृतिक विरासत के साथ और भी मजबूत होती दिखाई दे रही है.
औरंगाबाद से छत्रपति संभाजीनगर नाम में परिवर्तन केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं बल्कि मराठा इतिहास और सांस्कृतिक गौरव से जुड़ा प्रतीकात्मक कदम माना जा रहा है. भाजपा और महायुति सरकार इसे मराठा साम्राज्य की वीरता और परंपरा को सम्मान देने की दिशा में ऐतिहासिक फैसला बता रही है. वहीं विपक्ष का मत है कि ऐसे नाम परिवर्तन से आम जनता की समस्याओं का समाधान नहीं होता और विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना अधिक जरूरी है. फिर भी यह बदलाव महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजनीति में एक बड़ा संदेश देता है, जो क्षेत्रीय गौरव और पहचान को नई परिभाषा देने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.