43 वर्षों से संघर्ष
1978 के त्रिपक्षीय समझौते (TPA) के तहत शुरू हुई इस परियोजना में 1982-87 के दौरान चांडिल अनुमंडल के 116 गांवों की लगभग 4,35,000 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई थी। विस्थापितों को मुआवज़ा, सरकारी नौकरी, भूखंड, अनुदान और पुनर्वास सुविधाएं देने का प्रावधान था, लेकिन मंच का कहना है कि 43 साल बाद भी विस्थापित अपने न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मुख्य मांगें और विरोध के कारण
"क्षेत्रीय लिपिकीय पदों पर 85% विस्थापितों की सीधी नियुक्ति नियमावली, 2025" का कार्यान्वयन: अप्रैल 2025 में जारी हुई नियमावली के छह माह बाद भी बहाली प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।
लिपिकीय पदों से बाहर कर अन्य तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों में मैट्रिक या समकक्ष योग्यता वाले विस्थापितों के लिए पर्याप्त रिक्तियाँ सुनिश्चित करने की मांग। विकास पुस्तिका की समस्या अनेक विस्थापितों की पुस्तिकाएँ अब तक नहीं बनी हैं या उनमें नाम/आश्रितों के नाम गलत दर्ज हैं।
संगठन का आरोप है कि गलत प्रविष्टि के कारण आश्रितों को विस्थापित नहीं माना जा रहा है, जिससे वे सभी लाभों से वंचित हो रहे हैं। RL (जल भंडारण स्तर) की बाध्यता समाप्त हो विभाग द्वारा केवल 180 RL से 183 RL तक के गांवों में ही विकास कार्य किए जा रहे हैं।
संगठन सभी 116 गांवों के विकास कार्य की मांग कर रहा है, यह आरोप लगाते हुए कि RL की बाध्यता केवल आम और गरीब विस्थापितों पर लागू है, जबकि पहुँच वाले लोगों के गांवों का विकास नियमों से बाहर जाकर भी हो रहा है।
171 RL से 180 RL तक के गांवों को पूरी तरह उपेक्षित करने का आरोप।
पुनर्वास स्थल और भूखंड आवंटन
पुनर्वास स्थलों पर खाली प्लॉट नहीं हैं, और बचे हुए 9 स्थलों पर विकास कार्य न होने से अतिक्रमण बढ़ रहा है। पिछले तीन वर्षों से भूखंड आवंटन अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है, जिससे आवंटन का कार्य पूरी तरह रुका हुआ है। शीघ्र नियुक्ति की मांग।
विस्थापित अधिकार मंच फाउंडेशन ने अपने बयान में चांडिल से राजभवन तक पदयात्रा, जल सत्याग्रह, सांकेतिक डैम तोड़ो आंदोलन जैसे सफल संघर्षों का उल्लेख करते हुए विस्थापितों से 4 नवंबर के प्रदर्शन में बड़ी संख्या में भाग लेने और अपने पहचान, अधिकार और अस्तित्व की लड़ाई को मजबूत करने की अपील की है। जॉइन करें: 4 नवंबर 2025 (मंगलवार) | समय: 11:00 बजे स्थान: चांडिल डैम कार्यालय