Chandil Big News: चांडिल के शहरबेड़ा छठ घाट पर सोमवार शाम छठ पूजा के दौरान हुई दिल दहला देने वाली घटना ने पूरे इलाके को सदमे में डाल दिया. संध्या अर्घ्य के समय नहाते हुए 11 साल का आर्यन यादव गहरे पानी में चला गया. उसे बचाने की कोशिश में उसके पिता 45 साल के संजय यादव और परिवार के ही 19 साल के प्रतीक यादव ने नदी में छलांग लगा दी. तीनों को डूबता देख घाट पर तैनात चांडिल थाने के एक जवान ने भी बहादुरी दिखाते हुए पानी में कूदकर बचाने की कोशिश की, लेकिन तेज बहाव के आगे सब बेबस हो गए.
घटना की खबर फैलते ही घाट पर अफरा-तफरी मच गई. परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था और आसपास के लोग भी स्तब्ध रह गए. सूचना मिलते ही उपायुक्त नीतीश कुमार सिंह, पुलिस अधीक्षक मुकेश कुमार लुनायत और कई प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे. स्थानीय गोताखोरों की मदद से देर शाम आर्यन का शव पानी से बाहर निकाला गया. संजय और प्रतीक की तलाश में पूरी रात रेस्क्यू ऑपरेशन चलता रहा, लेकिन अंधेरे और तेज बहाव के कारण सफलता नहीं मिली. मंगलवार तड़के एनडीआरएफ की टीम ने संजय यादव का शव बरामद कर लिया, जिसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. प्रतीक की खोज अभी भी जोर-शोर से जारी है और गोताखोर लगातार पानी में डूबकी लगा रहे हैं.
परिवार में मातम का माहौल है. एक ही झटके में तीन लोगों को खोने का दर्द बयां करना मुश्किल है. घटनास्थल को प्रशासन ने पहले से ही डेंजर जोन घोषित कर रखा था और वहां नहाने पर रोक लगाई गई थी. बावजूद इसके बड़ी संख्या में श्रद्धालु घाट पर जमा हो गए. आस्था के नाम पर प्रशासनिक चेतावनी को नजरअंदाज करने की भारी कीमत इस परिवार को चुकानी पड़ी. घाट पर सुरक्षा के इंतजाम थे, लेकिन भीड़ इतनी ज्यादा थी कि हर किसी पर नजर रखना मुश्किल हो गया. पुलिस जवान की बहादुरी सराहनीय है, जिसने अपनी जान जोखिम में डालकर बचाने की कोशिश की.
प्रशासन अब तीसरे लापता युवक को निकालने में जुटा है. एनडीआरएफ के साथ स्थानीय गोताखोर और पुलिस की टीम दिन-रात लगी हुई है. आसपास के गांवों से भी लोग मदद के लिए पहुंच रहे हैं. इस हादसे ने छठ घाटों पर सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है. हर साल ऐसे हादसे होते हैं, लेकिन सबक नहीं लिया जाता.
यह हादसा छठ जैसे पवित्र पर्व पर सुरक्षा की घोर लापरवाही को उजागर करता है. प्रशासन द्वारा डेंजर जोन घोषित करने के बावजूद श्रद्धालुओं की भीड़ और उनकी जिद ने एक परिवार को बर्बाद कर दिया. आस्था महत्वपूर्ण है, लेकिन जान जोखिम में डालकर उसे निभाना समझदारी नहीं. प्रशासन की सख्ती की कमी और लोगों में जागरूकता का अभाव दोनों जिम्मेदार हैं. घाटों पर गोताखोरों की पहले से तैनाती, बैरिकेडिंग और माइक से लगातार चेतावनी जैसे उपाय जरूरी हैं. पुलिस जवान की कोशिश काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन एक व्यक्ति अकेले क्या कर सकता है. भविष्य में ऐसे हादसों से बचने के लिए प्रशासन को पहले से प्लानिंग करनी होगी और लोगों को भी नियम मानने की आदत डालनी होगी. यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए सबक है कि आस्था और सुरक्षा में संतुलन बनाना कितना जरूरी है.