Election Commission: चुनाव आयोग ने एक बार फिर मतदाता सूची को मजबूत बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. मंगलवार से उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, गोवा, पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप जैसे 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) का दूसरा चरण शुरू हो गया है. मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी घोषणा की और कहा कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची से गड़बड़ियां दूर करने, नए नाम जोड़ने और त्रुटियां सुधारने के लिए जरूरी है. आयोग का कहना है कि पलायन, मृत मतदाताओं के नाम न हटाना और डुप्लिकेट एंट्री जैसी समस्याओं को ठीक करने के लिए SIR एक प्रभावी तरीका है. सोमवार रात 12 बजे इन राज्यों की मतदाता सूचियां फ्रीज कर दी गईं, ताकि पुनरीक्षण के दौरान कोई बदलाव न हो.
पुराने मतदाताओं को बड़ी राहत, सिर्फ फॉर्म भरना होगा
इस SIR में सबसे बड़ी राहत यह है कि जिन मतदाताओं या उनके माता-पिता के नाम 2002-2004 के पिछले SIR में दर्ज हैं, उन्हें कोई दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्हें सिर्फ एक गणना फॉर्म भरना होगा, जिसमें उनका नाम, पता और अन्य बेसिक डिटेल्स मिलान की जाएंगी. आयोग ने पुरानी सूची का पूरा डेटा अपनी वेबसाइट voters.eci.gov.in पर अपलोड कर दिया है, जहां कोई भी व्यक्ति जाकर अपना या परिवार के सदस्यों का नाम चेक कर सकता है. अगर वेबसाइट पर चेक न कर पाएं, तो बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) नाम मिलान करके नए फॉर्म से जोड़ देंगे. बिहार के पिछले अनुभव से सीख लेते हुए आयोग ने गणना फॉर्म में बदलाव किया है, जिसमें पुराने SIR के ब्यौरे भी मांगे गए हैं. अगर मतदाता खुद न भर पाएं, तो BLO को इसे भरना अनिवार्य होगा. फॉर्म को QR कोड के साथ प्रिंट किया जा रहा है, जिसे स्कैन करके कोई भी ऑनलाइन डिटेल्स देख सकता है. इससे फॉर्म में गड़बड़ी की गुंजाइश कम हो जाएगी.
घर-घर BLO का दौरा, नए वोटर जोड़ने का अभियान
SIR की प्रक्रिया सरल रखने के लिए BLO घर-घर जाकर कम से कम तीन बार दौरा करेंगे. पहली बार अगर मतदाता घर पर न हो, तो अलग-अलग समय पर दोबारा जाएंगे, ताकि कोई छूट न जाए. इस दौरान फॉर्म-6 भरकर 18 साल पूरे कर चुके या करने वाले युवाओं को नए मतदाता के रूप में जोड़ा जाएगा. यानी गणना फॉर्म भराने के साथ ही नए वोटर बनाने का अभियान एक साथ चलेगा, जैसा बिहार में हुआ था. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए आधार को 12 वैध दस्तावेजों की सूची में शामिल किया गया है, लेकिन CEC ने साफ कहा कि आधार सिर्फ पहचान का प्रमाण है, न कि जन्मतिथि, निवास या नागरिकता का. अगर किसी के पास ये 12 दस्तावेज न हों, तो अतिरिक्त वैध दस्तावेज भी मान्य होंगे. ERO (इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर) दावों और आपत्तियों की जांच करेगा, और अंतिम सूची फरवरी 2026 तक प्रकाशित हो जाएगी. अगर कोई असंतुष्ट हो, तो 15 दिनों के अंदर जिला मजिस्ट्रेट या मुख्य चुनाव अधिकारी के पास अपील कर सकता है.
कमजोर वर्गों के लिए विशेष मदद, पारदर्शिता के इंतजाम
आयोग ने खास कमजोर वर्गों जैसे बुजुर्गों, दिव्यांगों, बीमारों और गरीबों के लिए विशेष मदद का इंतजाम किया है. BLO या सहायक उन्हें फॉर्म भरने में सहायता देंगे. साथ ही, किसी भी पोलिंग स्टेशन पर 1200 से ज्यादा मतदाता नहीं होंगे, और ऊंची इमारतों, गेटेड सोसाइटियों तथा झुग्गी बस्तियों में नए बूथ बनाए जाएंगे. राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी राजनीतिक दलों के साथ बैठकें करेंगे, ताकि प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे. BLO न सिर्फ लोकल सूची, बल्कि पूरे देश की मतदाता लिस्ट चेक करेंगे, ताकि डुप्लिकेट नाम पकड़े जा सकें. अगर नाम कहीं और मिल जाए, तो भी वोटर को मान्यता मिलेगी. ऑनलाइन फॉर्म भरने की सुविधा भी है, जिससे लोग घर बैठे प्रक्रिया पूरी कर सकें. SIR के तहत भारतीय नागरिक होना, 18 साल की उम्र और इलाके का निवासी होना जरूरी है, साथ ही कोई आपराधिक मामला न हो.
असम बाहर, बिहार को धन्यवाद
असम को इस चरण में शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि वहां नागरिकता संशोधन कानून के तहत सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में अलग प्रक्रिया चल रही है. उसके लिए अलग SIR की तारीखें बाद में घोषित होंगी. CEC ने बिहार के 7.5 करोड़ मतदाताओं को धन्यवाद दिया, जिन्होंने पहले चरण को सफल बनाया. आयोग ने सभी 36 राज्यों के अधिकारियों से चर्चा कर यह प्रक्रिया शुरू की है. यह नौवां SIR है, जो 1951 से 2004 के बीच आठ बार हो चुका है. राजनीतिक दलों ने कई बार सूची की गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे, इसलिए यह कदम जरूरी हो गया.
राजनीतिक विवाद और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं
SIR जैसी प्रक्रिया लोकतंत्र की रीढ़ मतदाता सूची को मजबूत करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन यह भी साफ है कि इसमें पारदर्शिता और समावेशिता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है. दस्तावेजों की छूट और तीन बार घर आने वाले BLO से आम आदमी को राहत मिलेगी, खासकर ग्रामीण और कमजोर वर्गों को. बिहार के अनुभव से सीखना सकारात्मक है, लेकिन राजनीतिक दलों के आरोपों से सतर्क रहना होगा कि यह विपक्षी वोटरों को नुकसान न पहुंचाए. QR कोड और ऑनलाइन चेक जैसी डिजिटल सुविधाएं आधुनिकता लाती हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की कमी से BLO पर बोझ बढ़ सकता है. कुल मिलाकर, यह अभियान न केवल चुनावी धांधली रोकेगा, बल्कि युवाओं को वोटिंग की आदत डालेगा, लेकिन सफलता तभी होगी जब सभी पक्ष मिलकर सहयोग करें. असम जैसी विशेष परिस्थितियों को संभालना भी आयोग की विश्वसनीयता परखेगा.
SIR या वोट चोरी?
हालांकि, SIR की शुरुआत से ही राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. विपक्षी दल इसे "वोट चोरी" का हथकंडा बता रहे हैं, खासकर बिहार में जहां पहले चरण से लाखों नाम कट गए. कांग्रेस, RJD और DMK जैसे दलों ने आरोप लगाया कि यह BJP को फायदा पहुंचाने की साजिश है, क्योंकि महिलाओं और युवाओं के नाम ज्यादा कटे. सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, जहां NGO और विपक्ष SIR को संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 326 का उल्लंघन बता रहे हैं. बिहार में रिपोर्ट्स हैं कि ग्रामीण और गरीब मतदाताओं को दस्तावेज जुटाने में दिक्कत हुई, जिससे नाम कटे है.
दस्तावेज जुटाना लोगों के लिए चुनौती?
SIR मतदाता सूची को मजबूत बनाने का नेक प्रयास है, लेकिन जनता के लिए इससे कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं, जो मुख्य रूप से प्रक्रियागत कमियों, सामाजिक असमानताओं और राजनीतिक दबाव से जुड़ी हैं. सबसे बड़ी समस्या दस्तावेजों की कमी है, खासकर ग्रामीण, गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों में, जहां लाखों लोग आधार या अन्य 12 दस्तावेज नहीं जुटा पाते. बिहार के पहले चरण में देखा गया कि महिलाओं का नाम 18-29 उम्र वर्ग में ज्यादा कटा, जिससे जेंडर रेशियो गिरकर 892:1000 रह गया, जबकि सर्वे में यह ऊंचा था. यह डिजिटल डिवाइड को बढ़ावा देता है, क्योंकि वेबसाइट चेक या QR कोड स्कैनिंग ग्रामीण इलाकों में मुश्किल है. BLO के तीन दौरों से राहत मिलेगी, लेकिन अगर वे समय पर न पहुंचें या फॉर्म भरने में गलती करें, तो नाम कटने का डर बना रहेगा, जो वोटिंग अधिकार को प्रभावित करेगा.
चुनाव से ठीक पहले SIR क्यों?
समय की कसौटी पर भी सवाल हैं. चुनाव से ठीक पहले SIR से लोग घबरा सकते हैं. विपक्ष के आरोपों से राजनीतिक पूर्वाग्रह का शक गहराता है, जैसे कि विपक्षी इलाकों में ज्यादा नाम कटना, जो "वोट थेफ्ट" की शिकायतें जन्म दे रहा है. सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से साफ है कि यह नागरिकता सत्यापन जैसा लग रहा है, जो अनुच्छेद 326 के वयस्क मताधिकार को कमजोर कर सकता है. हालांकि, आयोग की पारदर्शिता जैसे QR कोड और अपील प्रक्रिया से कुछ हद तक संतुलन बनेगा, लेकिन सार्वजनिक परामर्श की कमी और तेज समयसीमा से त्रुटियां बढ़ सकती हैं. कुल मिलाकर, SIR से जनता को नाम कटने का भय, अतिरिक्त मेहनत और असमानता का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन अगर BLO की भूमिका मजबूत हो और जागरूकता अभियान चलें, तो नुकसान कम हो सकता है. यह प्रक्रिया लोकतंत्र को मजबूत करेगी, बशर्ते राजनीतिक दबाव से दूर रहे और हाशिए वालों की आवाज सुनी जाए.