Big National News: भारत के हर पांचवें किशोर को मानसिक स्वास्थ्य की गंभीर समस्या है. ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज रिपोर्ट के मुताबिक 25 करोड़ किशोरों में से करीब पांच करोड़ डिप्रेशन चिंता और बौद्धिक अक्षमता से जूझ रहे हैं. यूनिसेफ की चाइल्ड एंड एडोलसेंट मेंटल हेल्थ सर्विस मैपिंग इंडिया 2024 और जीबीडी 2024 अपडेट कहते हैं कि सात से 14 प्रतिशत किशोर इन विकारों की चपेट में हैं. शहरी ग्रामीण दोनों इलाकों में हालात खराब हैं. कोविड ने तनाव 20 से 30 प्रतिशत बढ़ाया और ऑनलाइन क्लासों से स्क्रीन टाइम ने समस्या गहराई.                    
                    
                    
                                    
                                                
                                
                                
                                
                                
                                          
  
 
                                     
                                                            
                                     
                
           
       
ग्रामीण क्षेत्रों में 30 हजार से ज्यादा स्कूली बच्चों पर हुए रिव्यू में डिप्रेशन 21.7 प्रतिशत और चिंता 20.5 प्रतिशत निकली. दिल्ली के 2024 क्रास सेक्शनल अध्ययन में शहरी किशोरों में चिंता 50.6 प्रतिशत और डिप्रेशन 24.2 से 39.3 प्रतिशत तक पाई गई. करीब 10 प्रतिशत चिड़चिड़े और झुंझलाहट से ग्रस्त हैं. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के 2024 अपडेट में विकारों की दर 7.3 प्रतिशत है लड़के 7.5 प्रतिशत लड़कियां 7.1 प्रतिशत. टियर वन शहरों में 40 प्रतिशत किशोर तनाव को मुख्य समस्या मानते हैं. सिर्फ 80 प्रतिशत किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक है.
अकेलापन स्क्रीन टाइम प्रदूषण शोर प्रतिस्पर्धा और परामर्श की कमी मुख्य वजहें हैं. क्षेत्रीय असमानताएं भी बड़ी हैं. राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रयास कर रहे हैं लेकिन स्कूलों में परामर्श की कमी रुकावट है. विशेषज्ञ स्कूल आधारित शिक्षा और जागरूकता पर जोर देते हैं.
यह रिपोर्ट देश के भविष्य के लिए खतरे की घंटी है. किशोरों की मानसिक सेहत बिगड़ी तो सामाजिक शैक्षिक आर्थिक प्रगति रुकेगी. कोविड के बाद स्क्रीन टाइम और अकेलापन बढ़ा जो अब भी जारी है. दिल्ली जैसे शहरों में चिंता आधी आबादी को घेर रही है. सरकारी कार्यक्रम हैं लेकिन स्कूल स्तर पर अमल कमजोर है. जागरूकता और परामर्श बढ़ाना जरूरी वरना युवा शक्ति कमजोर पड़ेगी.