Jharkhand News: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता चंपई सोरेन ने मंगलवार को महागठबंधन सरकार पर आदिवासी-मूलवासी विरोधी होने का गंभीर आरोप लगाया है. चाईबासा के तांबो चौक इलाके में भारी वाहनों पर दिन में नो-एंट्री की मांग कर रहे आदिवासियों के आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस द्वारा की गई कथित लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने सरकार को “अमानवीय और शर्मनाक” बताया. सोरेन ने कहा कि बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के मद्देनजर आदिवासियों की यह मांग जायज थी और लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन असहनीय है. उन्होंने पूछा कि क्या सरकार को लगता है कि इन हथकंडों से आदिवासी समाज डर जाएगा.
घटना की पृष्ठभूमि में पश्चिमी सिंहभूम जिले के तांबो चौक पर सोमवार देर रात प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई. स्थानीय ग्रामीणों ने दिन में भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग को लेकर जाम लगाया था. जब पुलिस ने भीड़ हटाने की कोशिश की, तो पथराव हुआ, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए. इसके जवाब में लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लिया गया. सोरेन ने इस कार्रवाई को हूल दिवस पर भोगनाडीह में वीर सिदो-कान्हू के वंशजों पर लाठीचार्ज, गोड्डा में समाजसेवी सूर्या हांसदा के कथित फर्जी एनकाउंटर, नगड़ी में किसानों पर हमले और चाईबासा में पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर हस्तक्षेप जैसे पुराने मामलों से जोड़ते हुए कहा कि सरकार ने आदिवासियों को सबसे आसान निशाना बना रखा है. उन्होंने फर्जी एफआईआर, पुलिस प्रताड़ना और जेल भेजने जैसे कदमों को मूलवासियों की आवाज दबाने की साजिश करार दिया.
सोरेन ने “अबुआ-अबुआ” नारे को “लॉलीपॉप” बताते हुए कहा कि 1855 के हूल विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने भी संथाल परगना और एसपीटी एक्ट जैसे अधिकार दिए थे, लेकिन 170 साल बाद यह “अबुआ सरकार” पूर्वजों की पूजा करने वालों पर लाठी चला रही है. उन्होंने सिरमटोली में सरना स्थल पर विकास के नाम पर अतिक्रमण, नगड़ी में किसानों की जमीन घेरने और चाईबासा में संक्रमित रक्त चढ़ाने से पांच बच्चों (जिनमें ज्यादातर आदिवासी) की जिंदगी बर्बाद होने जैसे उदाहरण दिए. सोरेन ने खुद पर नगड़ी आंदोलन में हाउस अरेस्ट और मानकी मुंडा संघ के प्रदर्शन का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार को अंततः झुकना पड़ा था. उन्होंने चेतावनी दी कि राज्य की जनता अब एकजुट हो रही है और वे किसी भी अत्याचार के खिलाफ खड़े रहेंगे.
सोरेन ने झारखंड राज्य निर्माण के उद्देश्यों पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या यही सब देखने के लिए अलग राज्य बना था.
चंपई सोरेन का यह बयान झारखंड की राजनीति में आदिवासी असंतोष को एक बार फिर केंद्र में ला खड़ा करता है, जो महागठबंधन सरकार के लिए बड़ा खतरा बन सकता है. भाजपा नेता के रूप में सोरेन ने ऐतिहासिक प्रतीकों जैसे हूल विद्रोह और वीर सिदो-कान्हू का सहारा लेकर भावनात्मक अपील की है, जो आदिवासी वोट बैंक को अपनी ओर खींचने की रणनीति का हिस्सा लगता है. चाईबासा की घटना सड़क सुरक्षा जैसी जायज मांग से जुड़ी होने के बावजूद, सोरेन ने इसे व्यापक “आदिवासी-विरोधी दमन” का हिस्सा बताकर सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है. पुराने मामलों जैसे नगड़ी लैंड एक्विजिशन में हाउस अरेस्ट और सिरमटोली सरना स्थल पर अतिक्रमण का जिक्र करके उन्होंने एक कनेक्टेड नैरेटिव बनाया है, जो PESA एक्ट, CNT एक्ट और सांस्कृतिक अधिकारों जैसे मुद्दों को हवा देता है. हालांकि, सरकार की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया न आना सवाल पैदा करता है, क्योंकि पथराव और घायल पुलिसकर्मियों का पक्ष भी महत्वपूर्ण है. यह विवाद आगामी विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा को मजबूत कर सकता है. कुल मिलाकर, सोरेन का प्रहार न केवल राजनीतिक है, बल्कि यह झारखंड के मूल राज्य निर्माण के आदर्शों को चुनौती देता है, जहां आदिवासी हितों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी.